۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
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1 जुलाई 2024 - 13:03
ईद

हौज़ा / यह वाक्या 10 हिजरी का है जब अरब में मौजूद एक इलाक़ा जिसको नजरान के नाम से जाना जाता था वहाँ के ईसाइयों ने अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद स.ल.व.व.से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में बहस की और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा बताया पैगंबर ने उन्हें कई बार समझाया कि अल्लाह के बंदे है इसी सिलसिले को लेकर झूठ और सच के लिए मुबाहिला हुआ

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,यह वाक्या 10 हिजरी का है जब अरब में मौजूद एक इलाक़ा जिसको नजरान के नाम से जाना जाता था वहाँ के ईसाइयों ने अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद स.ल.व.व.से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में बहस की और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा बताया
पैगंबर ने उन्हें कई बार समझाया कि अल्लाह के बंदे है इसी सिलसिले को लेकर झूठ और सच के लिए मुबाहिला हुआ

यह माजरा 10 हिजरी का है जब अरब में मौजूद एक इलाक़ा जिसको नजरान के नाम से जाना जाता था वहाँ के ईसाइयों ने अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (स) से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में बहस की और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा बताया (माज़अल्लाह) और हुज़ूर पाक (स) के लाख समझाने के बावजूद कि हज़रत ईसा (अ) अल्लाह के बेटे नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ़ से नबी बनाये गए हैं

इस बात का इन्कार करते रहे जब नजरान के ईसाइयों के बड़े बड़े पादरी भी हुज़ूर (स) की बात को नहीं मानें बल्कि हुज़ूर पाक (स) को और  दीने इस्लाम को ही झूठा कहने लगे (माज़अल्लाह) तो फिर अल्लाह ने सूरए आले इमरान की आयत 61 को नाज़िल फ़रमाया:

فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ

  फिर जब तुम्हारे पास इल्म (क़ुरआन) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करें तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाएं) और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाएं और तुम अपनी जानों (नफ़्सों) को, उसके बाद हम सब मिलकर (ख़ुदा की बारगाह में) गिड़गिड़ायें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें।

  जब अल्लाह का यह हुक्म नाज़िल हुआ कि अब जब बात झूठ और सच की आ ही गई है तो फिर नबी (स) आप इन ईसाइयों के आलिमों से फ़रमा दीजिए कि आओ एक मैदान में हम अपने बेटों को बुलाएँ तुम अपने बेटों को बुलाओ, और हम अपनी औरतों को और तुम अपनी औरतों को बुलाओ और हम अपनी जानों (नफ़्सों) को बुलाएँ और तुम अपनी जानों (नफ़्सों) को बुलाओ उसके बाद हम सब मिलकर ख़ुदा की बारगाह में दुआ करते हैं कि हम में से जो झूठा है उस पर अल्लाह की लानत हो।

  जब दिन और वक़्त मुक़र्रर हो गया तो फिर 24 ज़िलहिज्ज 10 हिजरी को तमाम नजरान के बड़े बड़े आलिम व पादरी जमा हुए अपने पूरे लोगों के साथ और फिर रसूल अल्लाह (स) के आने का इंतज़ार करने लगे थोड़ी देर में वह लोग देखते हैं कि हुज़ूर पाक (स) चले आ रहे हैं लेकिन उनके साथ कोई भीड़ नहीं है ना असहाब का मजमा हैं बल्की क़ुरआन में अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ रसूल अल्लाह (स) के साथ हुक्मे परवरदिगार के मुताबिक़ बेटों में इमाम हसन अलैहिस्सलाम हुज़ूर पाक (स) की ऊंगली पकड़े हुए

और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हुज़ूर पाक (स) की गोद में उनके बाद औरतों में सिर्फ़ इकलौती ख़ातून ए जन्नत की सरदार हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा (जबकि हुक्म औरतों का हुआ था लेकिन शर्त सच्चा होने की थी जिसने पूरी ज़िन्दगी में झूठ न बोला हो इसलिए तन्हा एक ही ख़ातून) और रसूले ख़ुदा (स) की जान व नफ़्स के तौर पर सिर्फ़ हज़रत अली अलैहिस्सलाम (यहाँ पर भी नफ़्सों का हुक्म था लेकिन शर्त ऐसे इंसान की थी जिसने पूरी ज़िंदगी में कभी भी झूठ न बोला हो वरना वह झूठों पर लानत कैसे कर सकता है

जिसने ख़ुद झूठ बोला हो वरना लानत पलट के ख़ुद पर आ जाती) जब ईसाइयों के बड़े बड़े पादरियों ने इन पंजेतन पाक (अ) की इन नूरानी शख़्सियतों को आते देखा तो अचानक उन पादरियों ने बोलना शुरू किया कि हम ऐसी शख़्सियतों को मैदान में हमारी तरफ़ आते हुए देख रहे हैं

कि अगर यह लोग (पंजेतन पाक) पहाड़ की तरफ इशारा कर दें तो पहाड़ अपनी जगह से हट जायेंगे और अगर इन्होंने हमारे ऊपर लानत कर दी तो क़यामत तक कोई ईसाई नहीं आएगा सब अभी ख़त्म हो जायेंगे। इसलिए उन पादरियों ने हुज़ूर (स) से हार मानली और बिना मुबाहिला किये ही लौटने का फ़ैसला कर लिया और جزیه जिज़'या (इस्लामी टैक्स) भी देना मंज़ूर कर लिया।

अहले सुन्नत की मशहूर किताब मुसनद अहमद में हदीस नम्बर 12320 में इस वाक़ेए का ज़िक्र बयान हुआ है:

۔ (۱۲۳۲۰)۔ وَعَنْ سَعْدِ بْنِ اَبِیْ وَقَّاصٍ، قَالَ: وَسَمِعْتُہُ یَقُولُیَوْمَ خَیْبَرَ: ((لَأُعْطِیَنَّ الرَّایَۃَ رَجُلًا یُحِبُّ اللّٰہَ وَرَسُولَہُ، وَیُحِبُّہُ اللّٰہُ وَرَسُولُہُ۔)) فَتَطَاوَلْنَا لَہَا فَقَالَ: ((ادْعُوا لِی عَلِیًّا۔)) فَأُتِیَبِہِ أَرْمَدَ فَبَصَقَ فِی عَیْنِہِ وَدَفَعَ الرَّایَۃَ إِلَیْہِ فَفَتَحَ اللّٰہُ عَلَیْہِ، وَلَمَّا نَزَلَتْ ہٰذِہِ الْآیَۃُ {نَدْعُ أَبْنَائَ نَا وَأَبْنَائَ کُمْ} [آل عمران: ۶۱] دَعَا رَسُولُ اللّٰہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ عَلِیًّا وَفَاطِمَۃَ وَحَسَنًا وَحُسَیْنًا، فَقَالَ: ((اَللّٰہُمَّ ھٰوُلَائِ اَھْلِیْ۔)) (مسند احمد: ۱۶۰۸)

  तर्जुमा: साद बिन अबी वकास से रिवायत है वह कहते हैं: जब सूरए आले इमरान की आयत 61 आई:

فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ

  फिर जब तुम्हारे पास इल्म (क़ुरआन) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करें तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाएं) और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों (नफ़्सों) को बुलाएं और तुम अपनी जानों को, उसके बाद हम सब मिलकर (ख़ुदा की बारगाह में) गिड़गिड़ायें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें।

  जब आयत नाज़िल हुई तो रसूल अल्लाह (स) ने सय्यदना अली अलैहिस्सलाम, सय्यदा फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा, सैय्यदना इमाम हसन और सय्यदना इमाम हुसैन को बुलाया और फ़रमाया: ऐ अल्लाह! यह मेरे अहलेबैत हैं।

  एक और जगह सुनने इब्ने माजा में हदीस नम्बर 120 में आया है:

حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ إِسْمَاعِيل الرَّازِيُّ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا عُبَيْدُ اللَّهِ بْنُ مُوسَى، ‏‏‏‏‏‏أَنْبَأَنَا الْعَلَاءُ بْنُ صَالِحٍ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ الْمِنْهَالِ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ عَبَّادِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ عَلِيٌّ:‏‏‏‏   أَنَا عَبْدُ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏وَأَخُو رَسُولِهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، ‏‏‏‏‏‏وَأَنَا الصِّدِّيقُ الأَكْبَرُ لا يَقُولُهَا بَعْدِي إِلا كَذَّابٌ، ‏‏‏‏‏‏صَلَّيْتُ قَبْلَ النَّاسِ بِسَبْعِ سِنِينَ  .

  तर्जुमा: हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि मैं अल्लाह का बन्दा और उसके रसूल (स) का भाई हूँ और मैं सिद्दिके अकबर (सबसे बड़ा सच्चा) हूँ मेरे बाद इस फ़ज़ीलत का दावा झूठा शख़्स ही करेगा, मैंने सब लोगों से सात बरस पहले नमाज़ पढ़ी।

  अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की फ़ज़ीलत बयान करने के लिए यह एक हदीस ही काफ़ी है कि अहले सुन्नत की बड़ी किताब जामये तिर्मिज़ी शरीफ़ में आया है:

حَدَّثَنَا نَصْرُ بْنُ عَلِيٍّ الْجَهْضَمِيُّ، حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ، أَخْبَرَنِي أَخِي مُوسَى بْنُ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ، عَنْ أَبِيهِ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ، عَنْ أَبِيهِ مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ، عَنْ أَبِيهِ عَلِيِّ بْنِ الْحُسَيْنِ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ جَدِّهِ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَخَذَ بِيَدِ حَسَنٍ،‏‏‏‏ وَحُسَيْنٍ،‏‏‏‏ فَقَالَ:‏‏‏‏    مَنْ أَحَبَّنِي وَأَحَبَّ هَذَيْنِ،‏‏‏‏ وَأَبَاهُمَا،‏‏‏‏ وَأُمَّهُمَا كَانَ مَعِي فِي دَرَجَتِي يَوْمَ الْقِيَامَةِ قَالَ أَبُو عِيسَى:‏‏‏‏ هَذَا حَسَنٌ غَرِيبٌ، ‏‏‏‏‏‏لَا نَعْرِفُهُ مِنْ حَدِيثِ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ إِلَّا مِنْ هَذَا الْوَجْهِ.

  तर्जुमा: रसूल अल्लाह (स) ने इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़ा और फ़रमाया: जो मुझ से मोहब्बत करें और इन दोनों से और इन दोनों के बाप (हज़रत अली अलैहिस्सलाम) और इन दोनों की माँ (हज़रत फ़ातिमा ज़हरा) से मोहब्बत करे, तो वह क़यामत के दिन मेरे साथ मेरे दर्जे में होगा!

  ऊपर दी हुई क़ुरआन और अहादीस की तमाम मोतबर रिवायतों से एक बात तो समझ में आ गई कि तमाम आलमीन में पंजेतन पाक (अ) से बढ़कर कोई भी सच्चा व सिद्दिके अकबर नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा कोई और होता तो हुज़ूर (स) अल्लाह के हुक्म से उसको भी अपने साथ ईसाइयों के सामने मुबाहिला के लिए ले जाते...

  इस्लाम की ईसाइयों पर बिना हथियार से लड़ी गई जंग में जीत की ख़ुशी को ईद की ख़ुशी की तरह मुसलमानों और तमाम आलमे इस्लाम को हर साल मनाना चाहिए।

  तमाम आलमे इस्लाम को 24 ज़िलहिज्ज की इस ईदे मुबाहिला की ख़ुशी बहुत बहुत मुबारक हो।

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